मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में आज (31 जुलाई) को एनआईए की विशेष अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। यह मामला 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम ब्लास्ट से जुड़ा हुआ है, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह घटना 29 सितंबर 2008 को हुई थी और उस दौरान एक मोटरसाइकिल पर रखा बम फटा था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह तो साबित कर दिया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि उस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था। इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि घायलों की उम्र 101 नहीं, बल्कि 95 साल थी और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी।
एनआईए ने 2011 में शुरू की थी जांच, सात आरोपियों के खिलाफ मुकदमा हुआ
2011 में इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई। इसके बाद से एनआईए ने आरोपियों के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए और 2018 में मुकदमा शुरू हुआ। इस दौरान 323 गवाहों से पूछताछ की गई, लेकिन 40 गवाह अपने बयान से पलट गए। कोर्ट ने इस मामले में फैसला 31 जुलाई 2025 को सुनाया, जिसमें सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया।
क्या था मालेगांव ब्लास्ट?
मालेगांव ब्लास्ट 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक के पास हुआ था, जब एक बम विस्फोट ने इलाके को हिलाकर रख दिया था। इस हमले में छह लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह घटना एक व्यस्त चौराहे के पास हुई थी, जिसमें एक मोटरसाइकिल पर रखा बम फटा था। इस विस्फोट के बाद पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई थी। मामले की जांच के दौरान, महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया था, जिनमें बीजेपी की दिग्गज नेता और पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित भी शामिल थे। हालांकि, आज अदालत ने इन सभी आरोपियों को बरी कर दिया है।
विशेष अदालत का फैसला: क्या कहा कोर्ट ने?
अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए गए, जिसमें यह साबित हो सके कि बम को असेंबल करने में इनकी भूमिका थी। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि घटनास्थल से कोई खाली खोल (empty shells) बरामद नहीं हुए, जबकि फायरिंग की बात कही गई थी। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा के वाहन के मालिकाना हक को लेकर भी कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि फरीदाबाद, भोपाल आदि में हुई कथित षडयंत्रकारी बैठकों का कोई प्रमाण नहीं मिला।
“यह भगवा की जीत” “: साध्वी प्रज्ञा
मालेगांव ब्लास्ट के आरोपों से बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने कोर्ट में भावुक होकर कहा, “मैंने हमेशा कहा था कि जिन्हें भी जांच के लिए बुलाया जाता है, उनके पास कोई ठोस आधार होना चाहिए। मुझे जांच के लिए बुलाया गया और मुझे गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया गया। मैंने 13 दिन तक टॉर्चर सहन किया, और मुझे आतंकवादी बना दिया गया। 17 वर्षों से संघर्ष कर रही हूं, भगवा को कलंकित किया गया। इससे मेरा जीवन बर्बाद हो गया। यह भगवा और हिंदुत्व की जीत है।”
कर्नल पुरोहित की प्रतिक्रिया
कर्नल पुरोहित ने भी कहा, “मैंने देश और संगठन की सेवा करने का मौका उसी विश्वास के साथ लिया, जैसा मैंने इस मामले में फंसने से पहले किया था। मैं इसके लिए किसी भी संगठन को दोष नहीं देता, बल्कि मैं उन लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने व्यवस्था में विश्वास को फिर से बहाल किया।”
मालेगांव ब्लास्ट के प्रमुख आरोपी
मालेगांव ब्लास्ट के आरोपियों में साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे। इन सभी पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आतंकवादी कृत्य करने का आरोप था।
सुनवाई का ऐतिहासिक फैसला
यह फैसला लंबे समय से प्रतीक्षित था, क्योंकि मालेगांव ब्लास्ट मामला देश के सबसे जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में से एक था। कोर्ट के फैसले ने कई सवालों के जवाब दिए हैं और यह भी दर्शाया है कि यदि साक्ष्य मजबूत नहीं होते हैं तो न्यायालय को अपनी धारा का पालन करना पड़ता है।