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“संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का देश के दुश्मनों में शामिल होना निंदनीय और असहनीय है।” : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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राहुल गांधी द्वारा अमेरिका में दिए गए बयान आज कल चर्चा का विषय बने हुए है। उनके बयानों पर लगातार लोग उनकी आलोचना कर रहे है और साथ ही भाजपा की तरफ से भी राहुल गांधी पर लगातार तंज कसे जा रहे है। इसी कड़ी में अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी राहुल गांधी के आरक्षण वाले बयान पर निशाना साधा है।उन्होंने कहा कि”संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का देश के दुश्मनों में शामिल होना अधिक निंदनीय और असहनीय है।”

क्या बोले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि “अगर हम सच्चे भारतीय हैं तो हम कभी भी देश के दुश्मनों का साथ नहीं देंगे। उनको देश के संविधान की कोई जानकारी नहीं है। हमारे राष्ट्रीय हित के बारे में कोई जानकारी नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि “मुझे यकीन है कि आप जो देख रहे हैं उसे देखकर आपका खून खौल रहा होगा।आजादी के लिए लोगों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। माताओं ने अपने बेटे खोए हैं। पत्नियों ने अपने पति खोए हैं। हम अपने राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते। देश के बाहर हर भारतीय को राष्ट्र का राजदूत बनना होगा। कितना दुखद है कि जो व्यक्ति एक संवैधानिक पद पर है, वह इसका ठीक उल्टा कर रहा है। इससे अधिक निंदनीय, घृणित और असहनीय कुछ नहीं हो सकता कि आप देश के दुश्मनों का हिस्सा बन जाएं।”

देश को बांटना चाहते हैं कुछ लोग : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि ऐसे लोग आजादी का मूल्य नहीं समझते। वे नहीं समझते कि देश में पांच हजार साल पुरानी सभ्यता है। संविधान पवित्र है और इसे संस्थापकों ने तीन वर्षों की कड़ी मेहनत से तैयार किया था। संविधान सभा के सदस्यों की बैठक बिना किसी व्यवधान, व्यवधान, नारेबाजी और किसी पोस्टरबाजी होती थी। अब कुछ लोग देश को बांटना चाहते हैं। यह घोर अज्ञानता है।

क्या बोले थे राहुल गांधी?

राहुल गांधी ने अमेरिका दौरे पर कई विवादित बयान दिए जिसमे से एक बयान में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करने के बारे में तब सोचेगी, जब भारत भेदभाव रहित स्थान होगा और अभी ऐसा नहीं है।” उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि “जब आप वित्तीय आंकड़ों को देखते हैं, तो आदिवासियों को 100 रुपये में से 10 पैसे मिलते हैं। दलितों को 100 रुपये में से पांच रुपये मिलते हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को भी लगभग इतने ही पैसे मिलते हैं। सच्चाई यह है कि उन्हें उचित भागीदारी नहीं मिल रही है।

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