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कांग्रेस को लेकर अचानक क्यों बदल गए अखिलेश यादव के सुर, क्या लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है गठबंधन ?

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समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के कांग्रेस को लेकर सुर अचानक बदलते हुए नजर आ रहे हैं। बता दें कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर जुबानी जंग जारी थी। जहां अखिलेश यादव ने तो गठबंधन तोड़ने तक की बात कह दी थी। दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच भी जुबानी हमला काफी तेज हो गया था। लेकिन अचानक से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कांग्रेस पार्टी पर नरम दिखाई दे रहे हैं। अखिलेश अब स्वयं कांग्रेस की बात मानने का बयान दे रहे हैं। 

कांग्रेस की बात माननी पड़ेगी – अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच लगातार हो रही बयानबाजी पर अब विराम लग गया है। दरअसल कांग्रेस के संगठन महामंत्री के वेणुगेपाल ने सपा मुखिया को फोन पर बात करके सॉरी कहा। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का संदेश भी दिया। जहां संगठन महामंत्री ने कहा कि दोनों पार्टियों का लक्ष्य भारतीय जनता पार्टी को हराना है। इसलिए हमें आपस में कटुता को खत्म करना चाहिए। इसके साथ ही अखिलेश ने भी बयान देते हुए कहा कि हमें कांग्रेस की बात माननी पड़ेगी। इसके बाद से ही कांग्रेस और सपा के बीच हो रही बयानबाजी थम गई है।

सपा और कांग्रेस के बीच पड़ी थी तकरार

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को टिकट न दिए जाने के बाद से ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच तकरार दिखाई दे रही थी। जहां दोनों पार्टियों के बीच बयान बाजी इस हद तक पहुंच चुकी थी कि सपा के प्रवक्ता आईपी सिंह ने राहुल गांधी को मंदबुद्धि बता दिया था, तो वहीं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अखिलेश यादव को पहचानने से इनकार करते हुए कहा था कि कौन अखिलेश वखिलेश !! इतना ही नहीं बयानबाजी तो इस हद तक पहुंच चुकी थी कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अखिलेश यादव का नाम लिए बिना कहा था कि जो अपने पिता का सम्मान नहीं कर पाया, वह मेरा क्या सम्मान करेगा।

जबरदस्ती बनाया गया है गठबंधन ?

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच विवादित बयान बाजी तो फिलहाल थम गई है। लेकिन इस पूरी बयानबाजी से एक बात तो साबित हो गई कि दोनों पार्टियों के विचार अलग-अलग हैं। लेकिन इससे एक सवाल जनता के सामने आ रहा है कि आखिर अलग-अलग विचारधारा के लोग एकजुट क्यों हो गए। क्या विपक्षी पार्टियों का एकमात्र उद्देश्य हर हाल में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटाना है ? जब गठबंधन में विधानसभा चुनाव में ही तकरार देखने को मिल रही है, तो लोकसभा चुनाव में क्या स्थिति होगी? 

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