एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत सरकार ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति डेटा संग्रह को शामिल करने का फैसला किया है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार, सभी नागरिकों के लिए जाति पहचान अनिवार्य होगी – चाहे वे किसी भी धर्म के हों – चाहे वे हिंदू हों, मुस्लिम हों, सिख हों या ईसाई। जनगणना में धर्म के साथ-साथ जाति के लिए एक समर्पित कॉलम होगा, जिससे प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी जाति घोषित करना अनिवार्य हो जाएगा।
मुस्लिम आरक्षण की मांग स्वीकार नहीं की जाएगी
इस बार की जातीय जनगणना में मुसलमानों से भी उनकी जाति पूछी जाएगी। हर व्यक्ति को धर्म के साथ-साथ जाति की जानकारी भी देनी होगी। मुसलमानों में मौजूद विभिन्न जातियों को भी इस जनगणना में दर्ज किया जाएगा। खास तौर पर पसमांदा मुसलमानों की गिनती OBC श्रेणी के अंतर्गत करने की तैयारी है। सरकार का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि पूरा मुस्लिम समाज एक समान नहीं है। बल्कि उनमें भी पसमांदा जैसे वर्ग हैं, जो लगभग 80–85% मुस्लिम आबादी में शामिल हैं, लेकिन उन्हें अभी तक पर्याप्त सामाजिक और आर्थिक विकास नहीं मिल पाया है। हालांकि, धार्मिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं होने के कारण मुस्लिम आरक्षण की मांग स्वीकार नहीं की जाएगी।
ईसाई समुदाय के लिए आरक्षण की कोई नई व्यवस्था नहीं
इस प्रक्रिया में, धर्म के कॉलम के साथ-साथ जाति का कॉलम भी सभी के लिए अनिवार्य होगा, जिसमें ईसाई समुदाय भी शामिल है। इससे पहले, 1951 के बाद से जातीय जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े ही एकत्रित किए जाते थे। हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि जाति आधारित आरक्षण केवल ओबीसी (OBC) वर्ग के लिए ही लागू होगा, और धार्मिक आधार पर आरक्षण की अनुमति संविधान में नहीं है। इसलिए, ईसाई समुदाय के लिए आरक्षण की कोई नई व्यवस्था नहीं की जाएगी।
कब से शुरू होगी जनगणना?
आगामी दो से तीन महीनों में जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। अधिकारियों की डेप्युटेशन पर नियुक्ति का काम जल्द ही शुरू होगा। यह जनगणना पंद्रह दिनों में पूरी की जाएगी। इस बार डिजिटल पद्धति से जनगणना की जाएगी, जिसमें सभी विवरण आधार से जोड़े जाएंगे। बायोमेट्रिक डेटा का भी उपयोग किया जाएगा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का सहारा लिया जाएगा। हालांकि, आंकड़ों के विश्लेषण में एक से दो साल का समय लग सकता है।
सरकार का लक्ष्य 2029 के लोकसभा चुनाव को महिला आरक्षण के साथ कराना
सरकार का लक्ष्य 2029 का लोक सभा चुनाव महिला आरक्षण के साथ कराना है। अगले साल तक जनगणना का काम पूरा होने के बाद परिसीमन का काम शुरू होगा। इसके लिए आयोग बनेगा और रिपोर्ट बनाने के लिए राज्यों का दौरा करेगा। ओबीसी की संख्या बढ़ने पर सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की 27% सीमा बढ़ाने पर विचार हो सकता है। आरक्षण के भीतर आरक्षण सब कैटेगरी पर जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट पर अभी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया है। जातीय जनगणना के बाद इस पर विचार किया जा सकेगा।
मुस्लिम जातियां तीन वर्गों में बंटी हुई हैं
मुस्लिम समुदाय की जातियां तीन प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में बंटी हुई हैं। उच्चवर्गीय मुसलमानों को अशराफ कहा जाता है, जिनमें सैय्यद, शेख, तुर्क, मुग़ल, पठान, रांगड़, कायस्थ मुस्लिम, मुस्लिम राजपूत और त्यागी मुस्लिम शामिल हैं। मुसलमानों के पिछड़े वर्ग को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है, जिसमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी, गुर्जर, गद्दी, घोसी, दर्जी, मनिहार, कुंजड़ा, तेली, सैफी जैसी ओबीसी जातियां शामिल हैं। इसके अलावा, अतिपिछड़ी मुस्लिम वर्ग, जिन्हें अजलाल कहा जाता है, में धोबी, मेहतर, अब्बासी, भटियारा, नट, हलालखोर, मेहतर, भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद और मछुआरा जैसी जातियां शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय में दलित जातियां नहीं होती हैं।